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Showing posts from August, 2015

फरीदाबाद में क्यों जरूरी है यूनिवर्सिटी

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पिछले तीन-चार साल से हम फरीदाबाद में कभी रीजनल सेंटर तो कभी विश्वविद्यालय की मांग को लेकर आंदोलन होते देख रहे है। विभिन्न छात्र संगठन अपनी क्षमता मुताबिक आवाज बुलंद कर रहे है। मेरा खुद भी मानना है कि फरीदाबाद को एक सरकारी विश्वविद्यालय की जरूरत है। शहर के युवाओं में गुणवत्ता शिक्षा के लिए विश्वविद्यालय की जरूरत और बढ़ जाती है। पिछले चार साल के दौरान एमडीयू का जिस तरह की कार्यशैली सामने आई है। उससे प्रतीत होता है कि यूनिवर्सिटी फरीदाबाद के छात्रों के भविष्य के साथ खिलवाड़ कर रही है। कई प्रश्र है, जिनके आधार पर छात्र समुदाय विश्वविद्यालय की मांग को और तेज कर सकता है।  -जब हिसार में तीन, रोहतक में दो, भिवानी, जींद, सोनीपत, सिरसा, कुरूक्षेत्र में यूनिवर्सिटी हो सकती है। तो फरीदाबाद यूनिवर्सिटी से महरूम क्यों?  -इन सब जिलों में औसतन दूरी 60 किलोमीटर है। जबकि फरीदाबाद से रोहतक की दूरी 120 किलोमीटर है। इसके बावजूद यहां विश्वविद्यालय नहीं? -छोटे-छोटे काम के लिए छात्र को रोहतक जाना पड़ता है, जिससे छात्र का आर्थिक शोषण के साथ मानसिक शोषण भी होता है।  -फरीदाबाद गुडग़ांव के बाद हरियाणा सरकार

अटाली में कमजोर हुई विश्वास की डोर

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रक्षाबंधन पर न रिश्तेदार आए और न ही हुआ दंगल शांति के हो रहे प्रयास किसी को नहीं हो रहा विश्वास बल्लभगढ़। अटाली गांव में हुए दंगे को तीन माह से ज्यादा हो चला है। रक्षाबंधन के दिर इस बार पहले की तरह गांव में न ज्यादा रिश्तेदार आए और न ही वर्षों पुराना दंगल हुआ। दंगल जो लोगों को भाईचारे का ऐहसास कराता था, आज की तारीख में वह सभी को डरावना लगा। लोग अपने अनुभव बताते हैं कि पहले गांव में दूर-दूर से रिश्तेदार दंगल देखने आते थे। कई दिन गांव में रुकते थे, हंसी-अठखेलियां होती थीं। लेकिन अब गांव में दहशत का वातावरण है। इस आशंका से रिश्तेदारों ने भी अपनी चाल बदल ली कि कहीं वह भी दंगे की चपेट में न आ जाएं। दरसअल, 25 मई को एक धार्मिक स्थल निर्माण को लेकर दो समुदाय के बीच अविश्वास की गांठों को ढीली करने या खोलने के लिए ईमानदार कोशिश दिखाई नहीं दे रही। जिन लोगों ने इन गांठों को खोलने का प्रयास भी किए, उनकी आवाज नक्कारखाने में तूती की आवाज बन गई। कई गांवों के अमन पसंद लोगों ने शांति कमेटी बनाई। लेकिन हैरत करनी वाली बात है कि कमेटी पर भी अब लोगों का विश्वास नहीं है। दो दिन पहले गांव में जब