अटाली में कमजोर हुई विश्वास की डोर

रक्षाबंधन पर न रिश्तेदार आए और न ही हुआ दंगल
शांति के हो रहे प्रयास किसी को नहीं हो रहा विश्वास

बल्लभगढ़। अटाली गांव में हुए दंगे को तीन माह से ज्यादा हो चला है। रक्षाबंधन के दिर इस बार पहले की तरह गांव में न ज्यादा रिश्तेदार आए और न ही वर्षों पुराना दंगल हुआ। दंगल जो लोगों को भाईचारे का ऐहसास कराता था, आज की तारीख में वह सभी को डरावना लगा। लोग अपने अनुभव बताते हैं कि पहले गांव में दूर-दूर से रिश्तेदार दंगल देखने आते थे। कई दिन गांव में रुकते थे, हंसी-अठखेलियां होती थीं। लेकिन अब गांव में दहशत का वातावरण है। इस आशंका से रिश्तेदारों ने भी अपनी चाल बदल ली कि कहीं वह भी दंगे की चपेट में न आ जाएं।
दरसअल, 25 मई को एक धार्मिक स्थल निर्माण को लेकर दो समुदाय के बीच अविश्वास की गांठों को ढीली करने या खोलने के लिए ईमानदार कोशिश दिखाई नहीं दे रही। जिन लोगों ने इन गांठों को खोलने का प्रयास भी किए, उनकी आवाज नक्कारखाने में तूती की आवाज बन गई। कई गांवों के अमन पसंद लोगों ने शांति कमेटी बनाई। लेकिन हैरत करनी वाली बात है कि कमेटी पर भी अब लोगों का विश्वास नहीं है। दो दिन पहले गांव में जब शांति के प्रयास हो रहे थे, तो महिलाएं कमेटी के लोगों पर दूसरे लोगों से मिलीभगत का आरोप जड़ने लगे। कहने लगी किसी सूरत में गांव में धार्मिक स्थल बर्दाश्त नहीं होगा। इसमें युवाओं की आवाज भी शामिल थी। वहीं, पिछले दिनों जब सेक्टर-6 ईदगाह पर मीटिंग हुई तो संप्रदाय विशेष के लोगों ने मीटिंग का बहिष्कार कर दिया। बार-बार आग्रह के बाद गिने-चुने लोग ही इसमें पहुंचे। जबकि विवादित नेताओं की आवाज पर यहीं लोग सैकड़ों की संख्या में कहीं भी जुट जाते हैं तो यह समझना मुश्किल नहीं है कि हमारा समाज किस दिशा में जा रहा है और राजनीति का एजेंडा कौन तय कर रहा है।
गांव में जाने पर ध्यान में आता है कि एक वर्ग इस बात से नाराज है कि बेकसूर लोगों को जेल भेजा जा रहा है। लेकिन जब उनसे प्रश्न किया जाता है कि फिर कसूरवार कौन हैं तो अकल्पनीय जवाब आता है कि दंगाई ‘बाहर’ से आए थे, हमें नहीं पता कौन थे।
अपने बच्चों से तीन महीने से मिलने के लिए बेचैन 70 साल के बुजुर्ग नदीम को इस सवाल का जवाब आज तक नहीं मिला है कि ‘जिन बच्चों को हमने अपनी गोद में खिलाया, उन्होंने हमें क्यों बेघर कर दिया। हत्या, लूटमार और आगजनी करने वाले लोग यह कहकर कैसे बच सकते हैं कि दंगाई बाहर से आए थे।’ मास्टर धर्मवीर कहते हैं कि राजनीति के समीकरणों के चलते, राजनीतिक लोग अपनी चाल चल रहे हैं। वे वही कह और कर रहे हैं, जो उनके राजनीतिक हित में है। दुर्भाग्य से दोनों ही समुदाय के लोग उन्हें ही सुन भी रहे हैं।
मोहम्मद रमजान कहते हैं कि अज्जी कॉलोनी, फतेहपुर तंगा और बल्लभगढ़ के अलग-अलग जगहों में रह रहे सैकड़ों लोग अपने गांवों में जाने को तैयार नहीं हैं। पौधारोपण कर अटाली में शांति के पेड़ बोने वाली डॉ. आलोक दीप कहती हैं कि आखिर कब तक वे झुग्गियों और अपनी रिश्तेदारियों शिविरों में रहते रहेंगे। कौन किसको जिंदगी भर ऐसे ही खिलाता है। खंदावली निवासी मास्टर खलील कहते हैं कि सवाल यह है कि अटाली की फिजाओं में घेवर की मिठास की जगह सांप्रदायिकता का जो जहर तैर रहा है, उसे कैसे खत्म किया जाए। इसको खत्म करने की जिम्मेदारी किसकी है। इसकी जिम्मेदारी गांव-समाज की है, जो दुर्भाग्य से सामने नहीं आना चाहता।

Comments

  1. कितने क़त्ल कर दिए दंगाइयो ने ? आगजनी की घटना के पीछे भी प्रशासन का भेदभाव व दोषपूर्ण रवैया था। और वोअब भी जारी है। हिन्दुओ पर हुए हमलों पर क्यों कार्यवाही नहीं हुयी ? संदीप को तो खुद पुलिस ने ही अस्पताल पहुंचाया था।

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