उभरता युवा
उभरता युवा भारत तेजी से शहरी हो रहा है और साक्षर भी। आइए इसे कुछ आंकड़ों से समझते हैं। इस वक्त देश में 13 से 35 वर्ष की उम्र के 45.9 करोड़ युवा हैं, जिनमें 33.3 करोड़ युवा साक्षर हैं (नेशनल यूथ रीडरशिप सर्वे, 2009)। मजे की बात यह है कि पिछले दशक में कुल युवा आबादी तो 2 फीसदी की रफ्तार से बढ़ी (2001 में 39 करोड़ से बढ़कर 2009 में 45.9 करोड़ युवा), जबकि साक्षर युवाओं की आबादी 2.5 फीसदी की रफ्तार से बढ़ी (2001 में 27.3 करोड़ से बढ़कर 2009 में 33.3 करोड़)।इसी तरह युवा आबादी ग्रामीण भारत (2.11 फीसदी) की तुलना में शहरी भारत (3.15 फीसदी) में करीब एक फीसदी ज्यादा तेजी से बढ़ी। 13 से 24 साल की उम्र के युवाओं का सबसे बड़ा हिस्सा - करीब 39 फीसदी - उस उत्तर भारत में रहता है जिसे हम हिंदी पट्टी कहते हैं। दक्षिण भारत में इसका सबसे छोटा सिर्फ 19 फीसदी हिस्सा है। जबकि बाकी 21-21 फीसदी पूर्वी और पश्चिमी भारत में रहता है। इनमें से करीब एक चौथाई (27 फीसदी) युवा महानगरों में हैं और एक अन्य चौथाई (26 फीसदी) एक लाख से कम आबादी के छोटे शहरों में हैं। आज का युवा भारत एकरूप नहीं है। इसे हम तीन श्रेणियों में बांट सकते हैं : पहली श्रेणी भारतीय युवाओं की है, जो युवा आबादी के 67 फीसदी हैं और कस्बों व गांवों में रहते हैं। ये ग्लोबलाइजेशन से लगभग अछूते हैं और पारंपरिक मूल्यों में विश्वास करते हैं। दूसरी श्रेणी इंडियन युवाओं की है, जो कुल युवा आबादी के 31.5 फीसदी हैं। इन पर ग्लोबलाइजेशन का प्रभाव पड़ रहा है, पर इतना नहीं कि पारिवारिक मूल्यों में गहरे पैठी इनकी जड़ों को उखाड़ दे। तीसरी श्रेणी को हम इं‘ग्लो’डियंस कह सकते हैं। ये महानगरों में रहने वाले युवा हैं और संपन्न हैं। इनकी तादाद कुल युवा आबादी की मात्र 1.5 फीसदी है, लेकिन 70 फीसदी से भी ज्यादा तेजी से बढ़ रही है। यह युवा इंटरनेट और टेक्नोलॉजी में निष्णात है। वह पश्चिमी विचारों, परंपराओं, नई परिकल्पनाओं, महत्वाकांक्षाओं से प्रभावित हो रहा है, लेकिन दिल से आज भी पूरी तरह भारतीय है।
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