यहां हर रोज होती है रावण की पूजा



यहां हर रोज होती है राण की पूजाआधस समाज राण को महात्मा मानता है मुकेश शर्माफरीदाबाद। क्या आपने दस सिरों के राण के अलाा सौम्य और सुंदर राण देखा है। राण के चेहरे पर क्रोध की लकीरें न होकर हाथ बांधे किसी के सामने याचना करता हुआ दिखाई दे, तो आपको कैसा लगेगा। आपका उत्तर रहेगा अजीब और आश्चर्यजनक। जी हां, अपने शहर में सुंदर, सौम्य और याचना करता राण भी है। लोग इस राण की हर दिन पूजा करते हैं और उससे र भी मांगते हैं। लोगों की आस्था तो इससे भी आगे है। इस समुदाय के लोगों ने अपने और अपने बच्चों के नाम भी राण से प्रेरित होकर रखे हैं। एक आेर इस शहर में भी असत्य का प्रतीक मानकर राण का दहन किया जाता है, तो यह समुदाय राण को महात्मा साबित करने की कोशिश में है। एनआईटी पांच स्थितोल्मिकी मंदिर में लगी राण की मूर्ति समाज के अलग दृष्टिकोण की आेर संकेत करती है। समाज के लोग यहां प्रतिदिन दर्जनों की संख्या में पूजा-अर्चना करते हैं। राण के बारे में जब आधस के जिला अध्यक्ष कुंरपाल आदिासी से बात हुई, तो उन्होंने कहा कि भगानोल्मिकी ने ही आदि धर्म की शुरुआत की थी। भगानोल्मिकी की लिखी गई रामायण तोड़-मरोड़कर टी आदि में नाटक के रूप में दिखाई गई है। प्रसिद्घ टी धारााहिक रामायण से हर व्यक्ति ने देखकर अंदाजा लगा लिया है कि लंकापति राण एक दुष्ट और पापी राजा था। ह अधर्मी और दूसरे की पत्नी का अपहरण करके लंका ले गया था, लेकिन यह गलत और मनग़ढत आरोप है। राण को इस तरह दिखाना गलत है। यह पुराने इतिहास के साथ खिलाड़ है। भगानोल्मिकी द्वारा रचित रामायण में एक बार भी राण को गलत और धर्म रिुद्घ नहीं माना गया है। राण महान औरीर राजा ही नहीं, बुद्घिमानी, महान भक्त और महाज्ञानी व्यक्ति था। ह किसी भी रूप में गलत नहीं था। उसने अपने बल के बूते ही पूरे श् िपर राज किया था। ज्ञानी होने के साथ भगान का परम भक्त राण था। उसे भगानोल्मिकी का पूर्ण आर्शीाद मिला हुआ था। राण ने न ही माता सीता का हरण किया था और न ही उनके साथ किसी तरह का र्दुव्‍यहार। राण की छ िको बिगाड़ने का काम कुछ धर्मरिोधी लोगों ने किया है। महात्मा राण को सही सम्मान दिलाने के लिए आदि धर्म समाज कार्यरत है। आधस से जुड़े अनुयायी प्रतिदिन मंदिर में राण की पूजा करते हैं।दान, चंडाल, असुर और तमसाराण की छ िको सुधारने में लगे आधस परिार से जुड़े लोगों की आस्था इतनी गहरी है कि उन्होंने अपने और अपने बच्चों के नाम राण के ंश के अनुसार रखे हैं। कालेज और स्कूल में बच्चों को इन्हीं नाम से पुकारा जाता है। आधस से जुड़े ब्रह्मसिंह ने बताया कि उनके समाज के बच्चों के नाम दान, अछूत, असुर, तमसा, भील,ीर, ्राड़ि, मोक्ष आदि हैं। पहले उन्हें लोगों की हंसी का पात्र बनाना पड़ता था, लेकिन अब सब स्ीकार्य हो गया है।ीर, नितिन, दानी, आरती नामों पर आदिासियों को र्ग होता है। सभी कहते हैं कि इन नामों से उन्हें अपने पुूराने इतिहास की जानकारी मिलती है।ािह दशहरा में भी है भिन्नताआधस परिारों में दशहरा के दिन राण को जलाने की परंपरा नहीं है। जिस दिन पूरा देश राण को जलाकर बुराई पर अच्छाई की जीत का प्रतीक मानकर राण को जलाता है। हीं, आधस इस दिन राण को अपनी आेर से o्रद्घांजलि देता है। आधस का मानना है कि इस दिन राम ने राण को छल-कपट से मारा था। इसी तरह आधस मेंोिह की पद्घति भी अलग है। इन परिारों में अग्नि को साक्षी मानकर र-धू फेरे नहीं लेते, बल्कि आधस में दोनों पक्षों को रामायण की सौगंध खिलाकरोिह किया जाता है। इनमें शिेष बात यह है कि सभीोिह भीड़भाड़ और दहेज की बुराईयों से दूर होते हैं।निरक्षरता को दूर करने का संकल्प: राणआधस के राष्ट्रीय अध्यक्ष शुक्राचार्य दर्शन रत्न राण ने बताया कि आदि धर्म समाज देश का स्यंसेी और गैर राजनीतिक संगठन है। देश और दिेशों में भी आधस की शाखाएं है। आधस का संकल्प अंधशिस, नशाखोरी और अनप़ढता को मिटाना है।ोल्मिकी समाज के लोगों को राजनीतिक, सामाजिक और धार्मिक रूप से सुदृ़ढ करना है।

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