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Showing posts from March, 2017

आखिर कब मिलेगी ''केरल'' को आजादी

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शनिवार रात एकबार फिर केरल की घरती लहुलुहान हुई। केरल के कोयिलांदी जिले के किझैयूर गांव में राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ (आरएसएस) के कार्यकर्ताओं को माक्र्सवादी कम्युनिष्ट पार्टी (सीपीएम) कार्यकर्ताओ ने निशाना बनाया। उन पर बम फेंक कर जान से मारने की कोशिश हुई। इस हमले में संघ के तीन कार्यकर्ता घायल हुए हैं। तीन दिन पहले (5 मार्च) भी संघ के कार्यालय पर देसी बम से हमला किया गया था। इसमें चार कार्यकर्ता घायल हुए थे। लेकिन, केरल की वामपंथी सरकार इन घटनाओं पर चुप्पी साधे हुए है। जबकि इसी विचारधारा से प्रेरित छात्र कभी कश्मीर, कभी बस्तर, कभी जेएनयू तो कभी डीयू में आजादी की मांग करते है। मुझे समझ में नहीं आ रहा है कि वामपंथी छात्र व उनके आका किस आजादी की बात कर रहे है। ये आजादी ही तो है कि वे भारत माता तेरे टुकड़े होंगे जैसे देशद्रोही नारे लगा लेते है। ऐसा कृत्य किसी दूसरे देश में करते तो क्या हालत होता, ये वे जानते है।  और यदि वामपंथियों को आजादी के सही अर्थ पता है तो क्या वे बता सकते है कि केरल को आजादी कब मिलेगी? क्या केरल में भारत माता की जय, वंदे मातरम् के नारे लगाना अपराध है? यदि नहीं तो

नया नहीं है राष्ट्रद्रोह का यह खेल

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मुकेश शर्मा, दिल्ली विश्वविद्यालय में जारी राष्ट्रवाद बनाम राष्ट्रद्रोह में अखिल भारतीय विद्यार्थी परिषद्(एबीवीपी) ने सिद्ध कर दिया कि वह कैंपस में देशद्रोही नारों को बर्दाश्त नहीं करेगी। यह सही भी है। क्योंकि अभिव्यक्ति के नाम पर देश के खिलाफ कुछ भी कहने की इजाजत नहीं होनी चाहिए।  मेरा मानना है कि अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता एक स्वस्थ लोकतंत्र के लिए जरूरी भी है। लेकिन संसद पर हुए आतंकी हमले के दोषी अफजल गुरु की बरसी मनाकर उसे शहीद बताना और भारत विरोधी नारे लगे जैसी हरकतों को देश हित में नहीं कहा जा सकता है। 2014 में आई राष्ट्रवादी भाजपा सरकार के बाद इन सपोलों का दम घुटने लगा है। इसलिए छटपटाते हुए ये इधर-उधर हाथ-पैर मारकर अपने अस्तित्व की लड़ाई लड़ रहे है। इससे पहले भी ये पथभ्रष्ट छात्र कई बार देश विरोधी गतिविरोधी गतिविधियों में पैरवी करते नजर आए।  चाहे फिदायीन इशरत जहां का मामला हो या संसद हमले के जिम्मेदार अफजल गुरू का मामला हो या मुंबई हमलों के लिए जिम्मेदार याकूब मेमन की फांसी का सवाल हो। मुझे समझ नहीं आता कि जब कभी चीन की फौज विवादित क्षेत्र से भारत में घुस आती है या

कितनी डरावनी थी 19 जनवरी की वो रात

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-कट्टरपंथियों के जुल्म से तंग आकर शुरू हुआ था विस्थापन -अपने देश में विस्थापितों की जिंदगी जी रहे है पंडित मुकेश शर्मा,  फरीदाबाद। 19 जनवरी, इतिहास के पन्नों में यह तारीख घाटी से कश्मीरी पंडितों के पलायन के दिन के रूप में दर्ज है। 90 के दशक आज ही के दिन ठीक 27 साल पहले कश्मीर से पंडितों का विस्थापन शुरू हुआ था। जेहादी कट्टरपंथियों के जुल्म ने उन्हें घर छोडऩे को मजबूर कर दिया। 27 साल पहले की उस डरावनी रात को सोचकर आज भी कश्मीर पंडित सिरह उठते है।  वर्ष 1985 के बाद से कश्मीर पंडितों को कट्टरपंथियों और आतंकवादियों से लगातार धमकियां मिलने लगी। आखिरकार 19 जनवरी 1990 को कट्टरपंथियों ने 4 लाख कश्मीरी पंडितों को उनके घरों से भागने के लिए मजबूर कर दिया। कश्मीर से भागे सैंकड़ों पंडितों ने फरीदाबाद में शहर ली। सेक्टर दो, तीन, 55, 37, 14, 15 में ऐसे 12 सौ से ज्यादा परिवार है, जो आज भी 1990 के मंजर को याद कर सिहर उठते है। सौपोर कस्बे में स्टेश्नरी और सेबों के थोक विक्रेता रहे पंडिता परिवार अब एक कमरे का मकान रहते है। जबकि कस्बे में उनका 30 एकड़ जमीन में सेब के बागान थे, चार मंजिला मका