आखिर कब मिलेगी ''केरल'' को आजादी
- शनिवार रात एकबार फिर केरल की घरती लहुलुहान हुई। केरल के कोयिलांदी जिले के किझैयूर गांव में राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ (आरएसएस) के कार्यकर्ताओं को माक्र्सवादी कम्युनिष्ट पार्टी (सीपीएम) कार्यकर्ताओ ने निशाना बनाया। उन पर बम फेंक कर जान से मारने की कोशिश हुई। इस हमले में संघ के तीन कार्यकर्ता घायल हुए हैं। तीन दिन पहले (5 मार्च) भी संघ के कार्यालय पर देसी बम से हमला किया गया था। इसमें चार कार्यकर्ता घायल हुए थे। लेकिन, केरल की वामपंथी सरकार इन घटनाओं पर चुप्पी साधे हुए है। जबकि इसी विचारधारा से प्रेरित छात्र कभी कश्मीर, कभी बस्तर, कभी जेएनयू तो कभी डीयू में आजादी की मांग करते है। मुझे समझ में नहीं आ रहा है कि वामपंथी छात्र व उनके आका किस आजादी की बात कर रहे है। ये आजादी ही तो है कि वे भारत माता तेरे टुकड़े होंगे जैसे देशद्रोही नारे लगा लेते है। ऐसा कृत्य किसी दूसरे देश में करते तो क्या हालत होता, ये वे जानते है। और यदि वामपंथियों को आजादी के सही अर्थ पता है तो क्या वे बता सकते है कि केरल को आजादी कब मिलेगी? क्या केरल में भारत माता की जय, वंदे मातरम् के नारे लगाना अपराध है? यदि नहीं तो फिर संघ कार्यकर्ताओं की हत्या क्यों हो रही है। क्यों आरएसएस कार्यालय पर सत्तारूढ़ पार्टी माक्र्सवादी कम्युनिष्ट पार्टी(सीपीएम) कार्यकर्ता बम फेंक रहे है। निर्दोष लोगों को निशान क्यों बनाया जा रहा है। मई माह में सीपीएम के सत्ता में आने के बाद अभी तक आरएसएस और भाजपा के 10 कार्यकर्ताओं की हत्या हो चुकी है। माक्र्सवादी कम्युनिस्ट पार्टी (सीपीएम) कार्यकर्ताओं द्वारा राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ कार्यकर्ताओं के साथ मारपीट या हिंसा जैसे आम बात हो चुकी है। आए दिन सीपीएम के गुण्ड़े संघ, एबीवीपी, भाजपा के दफ्तर में बम फेंकते रहते है। पिछले 20 साल में संघ के 250 कार्यकर्ताओं की हत्याएं हो चुकी है। दुर्भाग्य कहेंगे कि केरल में वामपंथियों ने हत्या और हिंसा की राजनीति को चुना है। वहीं, दिल्ली में ये वामपंथी अभिव्यक्ति के नाम पर देशद्रोही नारों का समर्थन करते है। वामपंथियों की फितर सामने आ रही है। तभी तो आम जनमानस ने इस नकारात्मक विचार को छोड़ राष्ट्रवाद के साथ चलने का फैसला लिया है। जल्द ही यूपी भी इसका गवाह बनेगा।
लेखक: मुकेश शर्मा, सशक्त युवा फाउंडेशन के मैनेजिंग ट्रस्टी है।
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