एबीवीपी: व्यक्ति निर्माण से राष्ट्र निर्माण


राष्ट्रभक्ति ले हृदय में, हो खडा यदि देश सारा।

संकटों पर मात कर यह राष्ट्र विजयी हो हमारा।।

ये पंक्तियां 'अखिल भारतीय विद्यार्थी परिषद्' (ABVP) जैसे दूरदर्शी, समदर्शी, सर्वसमावेशी संगठन का ध्येय मंत्र है। तभी तो ऐसे गीतों को गाकर परिषद् के कार्यकर्ताओं का सीना चौड़ा, भुजाएं फौलादी और आत्मविश्वास दुगुना हो जाता है। तब एक सामान्य सा छात्र एक ऐसा व्यक्ति बन जाता है, जो कुछ भी कर गुजरने की इच्छा रखता है। उसमें इतना जोश रहता है कि वह किसी भी चुनौती को स्वीकारने के लिए  तैयार रहता है। व्यक्ति निर्माण से राष्ट्रनिर्माण के इस मन्त्र ने हजारों छात्र-युवाओं को दिशा दी है। इसलिए आज समाज ने स्वीकार किया है कि छात्र शक्ति ही राष्ट्रशक्ति है।  

स्वतंत्रता आन्दोलन में छात्रों की प्रमुख भूमिका रही है, इस बात से कोई इंकार नहीं कर सकता। महात्मा गांधी के आह्वान पर लाखों छात्र अंग्रेजी सरकार द्वारा स्थापित स्कूलों, कॉलेजों और विश्वविद्यालयों को छोडकर आजादी के आंदोलन में कूद पडें थे। उस समय अंग्रेजी सरकार ने छात्रों को उनके कैरियर की दुहाई दी। लेकिन, छात्र समुदाय ने कैरियर की चिंता नहीं की। जिसके फलस्वरूप देश को 15 अगस्त, 1947 को अंग्रेजों की दासता से मुक्ति मिली। लेकिन, अदूरर्शी राजनेताओं ने आजादी के बाद किए जाने वाले राष्ट्रीय पुर्ननिर्माण की परिकल्पना नहीं की। बल्कि उनमें सत्ता की भूख बढ गई। तभी तो उस दौरान राजनेताओं ने कहना शुरू किया, ''देश आजाद हो गया है, इसलिए अब इसके निर्माण का जिम्मा भी उनका है। सभी लोग अब आराम करें, सो जाएं''। ऐसी बातों को सुनकर देश का छात्र आंदोलन भटकाव की तरफ जा सकता था। तब कुछ देशभक्तों ने अंबाला स्थित डीएवी कॉलेज में मीटिंग कर छात्रों को राष्ट्रीय पुर्ननिर्माण के कार्य में लगाने का निर्णय लिया। इस सागर मंथन से 9 जुलाई, 1949 को अखिल भारतीय विद्यार्थी परिषद् का जन्म हुआ। साथ ही शुरू हुआ युवाशक्ति के संवर्द्धन, परिवर्द्धन एवं व्यक्तित्व-विकास को समर्पित राष्ट्रवादी छात्र आंदोलन।

शुरूआत में परिषद् ने देश भर के छात्रों के मिलकर देशवासियों को साक्षर बनाने का बीडा उठाया और लाखों लोगों को साक्षर किया। 1961 में जब गोवा मुक्ति आंदोलन ने जोर पकडा, तो परिषद्  का कार्यकर्ता भी इसमें सहभागी रहा। छात्र आंदोलन के साथ परिषद् ने 1961 में चीन के आक्रमण का प्रतिरोध किया और 1965 में पाकिस्तानी आक्रमण के विरुद्ध जनजागरूकता में सहभागी रहा। शुरूआत में परिषद् को उस समय के जनसंघ का छात्र मोर्चा कहा गया। लेकिन 1967 में जब जनसंघ की अनेक राज्यों में सत्ता में भागीदारी हुई। तब भी अनेक मुद्दों पर परिषद् ने सरकारों का विरोध किया। अक्सर जो छात्र संगठन राजनीतिक दलों से जुड़े होते है, उनके लिए इस प्रकार का विरोध करना संभव नहीं होता। लेकिन, परिषद् ने ऐसा किया। शिक्षा क्षेत्र में भारतीय भाषाओं की महत्ता को स्थापित करने के लिए 1967 में जो बड़ा आन्दोलन शुरू हुआ। उसकी अगुवाई विद्यार्थी परिषद ने की। जब गुजरात में नव निर्माण आन्दोलन भड़का और प्रदेश का छात्र हर क्षेत्र में व्यापक सडांध को दूर करने के लिए उठ खडा हुआ तो उसमें प्रमुख भूमिका विद्यार्थी परिषद् की रही। 1974 में जय प्रकाश नारायण ने समग्र क्रांति का बिगुल बजाया तो उनके इस संदेश को देश के जन-जन तक पहुंचाने का महत्वपूर्ण कार्य  'अखिल भारतीय विद्यार्थी परिषद्' ने ही किया। 

कश्मीर बचाओ अभियान के तहत श्रीनगर के लालचौक पर तिरंगा लहराने का प्रयास अभाविप ने किया और उसके आह्वान् पर इस कार्य हेतु देश की पूरी युवाशक्ति उमड़ पड़ी। देश-विदेश को इस बात का भान हो गया कि कश्मीर के अलगाववाद का स्वप्न देखना मात्र स्वप्न है यह कभी यथार्थ नहीं हो सकता क्योंकि भारत का युवा अभाविप के नेतृत्त्व में अंगद की तरह पैर जमाये हुये है, वह इस भूमि का एक अंगुल भी न देगा। बांग्लादेशी घुसपैठ के विरोध में अभाविप ने ’चिकन नेक’ का घेराव किया और व्यापक राष्ट्रव्यापी प्रदर्शन करते हुये सोती सत्ता को नींद से जगाया और इस समस्या के प्रति ध्यान अकर्षित करवाया। चाहे वे कश्मीर के अपने ही देश में विस्थापित पण्डित हों अथवा चीन द्वारा सताये तिब्बती बौद्ध परिषद् हर अन्याय के विरुद्ध चट्टान सी खड़ी रही है।

हरियाणा की भ्रष्ट कांग्रेस सरकार को जड से उखाडने में विद्यार्थी परिषद् की भूमिका को कोई भूला नहीं सकता। 26 अक्तूबर, 2011 को ''महम चौबीसी'' से बिगुल बजाकर विद्यार्थी परिषद ने कांग्रेस सरकार के खिलाफ प्रदेश में सशक्त छात्र आंदोलन खडा किया। प्रदेश में नक्सलवाद की पौध को भी परिषद् ने खत्म किया। 

देखा जाएं तो जिन विषयों को कुम्भकर्णी शासन कभी न देखता और न देख सकता, ऐसे राष्ट्रीय, अन्तरराष्ट्रीय महत्त्व के विषयों पर अभाविप ने सदा शासन व समाज का ध्यान आकर्षित करवाया है। चाहे शिक्षा का क्षेत्र हो या समाज का, देश के भीतर की बात हो या बाहर की, सभी पर अभाविप से जुड़े सजग युवावर्ग का ध्यान सदा रहा है और आज भी है। परिषद का कार्यकर्ता काॅलेज-स्कूल की समस्याओं से लेकर राष्ट्रीय मुददों पर भी अपनी राय रखता है। वह सामाजिक अनुभूति, एग्री-विजन और मेडिविजन जैसे प्रकल्पों के माध्यम से सामाजिक परिवर्तन का वाहक बना है। एकबार फिर देश में राष्ट्रवाद का प्रवाह तेज हुआ है। परिषद के कार्यक्रमों से परिभाषित हुआ है कि छात्र कल का नहीं, आज का नागरिक है। 










लेखकः मुकेश वशिष्ठ, अभाविप हरियाणा के पूर्व प्रदेश मंत्री रहे है। 

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