उभरते युवा भारत में आपका स्वागत
भारत आज दुनिया के युवतम देशों में गिना जाता है। हमारी करीब आधी आबादी यानी 50 करोड़ से ज्यादा लोग अभी 24 वर्ष से कम उम्र के हैं। देश आज बदला हुआ दिखाई देता है, तो इसी युवा आबादी की बदौलत। युवा दिवस के अवसर पर युवाओं की दुनिया की एक झलक..उसकी उंगलियां मोबाइल फोन के नंबरों पर फटाफट चलती हैं। वह संगीत सुनते हुए या किताब पढ़ते हुए या आपसे बात करते हुए मोबाइल पर टेक्स्ट मेसेज भेज सकता है। फेसबुक पर अपना स्टेटस अपडेट करते हुए एक साथ दस दोस्तों से जी-चैट कर सकता है। वह भी बिल्कुल अलग-अलग विषयों पर। वह थोड़े लापरवाह और थोड़े सधे हुए ढंग से बाइक टिकाता है और आत्मविश्वास भरे कदमों से मंजिल की ओर बढ़ जाता है। वह हर वक्त कुछ जल्दी में दिखाई देता है। उसके चेहरे पर एक किस्म की उत्सुकता है और खुशी भी। आप उसे अक्सर ईयरफोन कानों में लगाए अपनी धुन में खोया हुआ देखेंगे या फिर मोबाइल पर किसी से बात करते हुए। उसकी भाषा आपको कुछ अजीब-सी लग सकती है। उसमें अंग्रेजी और हिंदी के शब्दों का सम्मिश्रण है। बड़े और लंबे शब्दों को तोड़कर उसने छोटा बना लिया है। हिंदुस्तान के युवाओं की रोमांचक दुनिया में आपका स्वागत है। आज का युवा अपने से पिछली पीढ़ी की तरह प्रगतिशील नहीं है। वह अपने मौलिक ढंग से प्रगतिशील है। उसके पैरों में न रबर की चप्पलें हैं, न कंधों पर झोला और न ही झोले में विचारधारा का बोझ। यह भारत की पहली नॉन-सोशलिस्टिक पीढ़ी है। उसके भीतर आकांक्षाएं कुलांचे भर रही हैं। उसकी जेब में पैसा है और पैसे की ताकत को वह पहचान रहा है। दुनिया भर के व्यवसायी उसका एआईओ (एटीट्यूड, इंट्रेस्ट, ओपिनियन) समझने को बेताब हैं।स्मार्ट मल्टी-टास्कर युवाओं की यह पीढ़ी बेहद स्मार्ट मल्टी-टास्कर यानी एक साथ कई काम करने में दक्ष है। वे मोबाइल पर बात करते हुए और कई दोस्तों के साथ नेट पर चैट करते हुए फ्लिकर पर अपने फोटो भी लोड कर सकते हैं। उन्हें गलत मत समझिए और किसी एक काम पर ध्यान न लगाने के लिए उन्हें डांटिए मत। अब एक समय में एक काम करने का जमाना बीत चुका है। यह नौजवान पीढ़ी ऐसे समय जन्मी है जब ‘विकल्पों’ की बहुतायत सामान्य बात है। आज का समय आर्थिक उदारवाद के पहले के जमाने से बिल्कुल अलग है, जब एंबेसेडर एकमात्र कार थी, दूरदर्शन एकमात्र चैनल। यह पीढ़ी कई मीडिया या कम्यूनिकेशन चैनल के इस्तेमाल में प्रवीण है और दुनिया भर में अपने दोस्त बना रही है। सोशल नेटवर्क और फोरम उनके लिए ‘घर’ की तरह हैं।2009 में इनजेनइनसाइट के एक सर्वे से पता चला कि आज के युवाओं के बीच लोकप्रिय भाषा में स्थानीय बोलियों और शब्दों (स्लैंग) का प्रयोग बढ़ रहा है। पहले स्थानीय स्लैंग का इस्तेमाल खराब समझा जाता था। लेकिन इस पीढ़ी के लिए स्थानीय होना ‘कूल’ है। स्ट्रीट फूड, लस्सी, स्थानीय पेय, भारतीय कॉमिक्स और टीशर्ट पर गांधी जी की तस्वीर युवाओं में ज्यादा लोकप्रिय हो रहे हैं। इसी तरह, पिछली पीढ़ी की तरह विदेश में ‘सेटल’ होने की इच्छा घट रही है। ‘फन और स्टडी’ के लिए विदेश जाना तो ठीक है, लेकिन बसने के लिए नहीं। मैं अक्सर लोगों को यह कहते सुनता हूं कि अरे, आज के बच्चे बड़ों की इज्जत नहीं करते। सचमुच ऐसा है? जरा हालात को समझने की कोशिश कीजिए। आदर ज्ञान और बुद्धिमता से अर्जित किया जाता है। आज बच्चों के पास ज्ञान के बेशुमार स्रोत हैं। विकीपीडिया से लेकर वेब 2 इंटरनेट फोरम तक और सोशल नेटवर्क से यू-ट्यूब पर ‘हाऊ टू’ (कैसे करें) वीडियोज तक सारी जानकारियां उनकी उंगलियों पर मौजूद हैं। ज्ञान को अपडेट करना भी बहुत आसान हो गया है। जो जानकारियां पहले बड़ों और टीचर्स से मिलती थीं, अब इंटरनेट से उन्हें मिल जाती हैं। लिहाजा जब तक उन्हें उस सबके अलावा ज्ञान व अनुभव नहीं देंगे जो ‘नेट पर उपलब्ध’ है, तब तक उनसे ‘इज्जत’ हासिल करना कठिन होगा।मोबाइल से दोस्ती मोबाइल फोन उनका सबसे प्रिय खिलौना है। आज हमारे हर दूसरे युवा व किशोर के हाथ में मोबाइल है। यह उनकी ताकत भी है और जरूरत भी। संपर्क और बात करने के लिए तो वे इसका प्रयोग करते ही हैं, उनके लिए इसके कई और इस्तेमाल भी हैं। टेक्स्ट मैसेज भेजना किशोरों के बजाय युवाओं में ज्यादा कॉमन है। लड़कियों की तुलना में लड़के मोबाइल पर दोस्तों से ज्यादा गप्पें करते हैं। सेल फोन उनके लिए मनोरंजन का औजार भी बन गया है। रेडियो और गेमिंग तो मोबाइल में है ही, बढ़ती मेमोरी कैपेसिटीे, आधुनिक कैमरों, म्यूजिक प्लेयर्स की पोर्टेबिलिटी और प्लग एंड प्ले जैसी सुविधाओं ने सेल फोन को उनके एकांत का सबसे अच्छा साथी बना दिया है। यह उन्हें ‘पर्सनल स्पेस’ देता है, जो माता-पिता द्वारा दी गई स्पेस से अलग होती है। मोबाइल आज उनकी पर्सनल डायरी और ‘टूल टू थ्रिल’ बन गया है। लेकिन भारत के युवा की जड़ें आज भी परिवार में हैं। परिवार की नजर में खुद को काबिल साबित करने के लिए वे पिछली पीढ़ी से कहीं ज्यादा उत्सुक हैं। ग्लोबल टीजीआई टीन सर्वे से पता चला कि 76 फीसदी भारतीय युवा मानते हैं कि ‘परिवार की नजर में कुछ अच्छा कर पाने की बहुत अहमियत है’। ऐसा मानने वाले युवाओं की संख्या भारत में सभी देशों से ज्यादा थी। 1500 युवाओं के बीच इनजेनइनसाइट सर्वे में पाया गया कि युवाओं की पहली प्राथमिकता परिवार (53 फीसदी) थी, कॅरियर (39 फीसदी) और प्यार (8 फीसदी) उसके बाद आता है। अलबत्ता उनकी जिंदगी पर सबसे ज्यादा प्रभाव दोस्तों का ही है। साथ पढ़ने और घूमने वाले वास्तविक दोस्तों के अलावा आज के युवा इंटरनेट पर वचरुअल फ्रेंड बना रहे हैं।आश्चर्य नहीं कि युवाओं की यह पीढ़ी अपनी क्षमताओं को लेकर कहीं ज्यादा आत्मविश्वास से भरी है। पिछली पीढ़ी की तुलना में आज के युवाओं की नजरें लगातार सामने आ रहे ‘नए अवसरों’ पर हैं। वे उद्यमशीलता और कॅरियर की ‘आउट ऑफ बॉक्स’ संभावनाओं पर ज्यादा ध्यान दे रहे हैं। वे ग्लोबल टेलेंट पूल का हिस्सा हैं और यह बात वे जानने लगे हैं। दुनिया भी उनकी रचनात्मकता, नए विचारों और कौशल को स्वीकार कर रही है। इंटरनेट, मीडिया और रियलिटी शो उन्हें अपने आप को साबित करने का मौका दे रहे हैं। हां, उनमें प्रदर्शन की भावना पिछली पीढ़ी की अपेक्षा ज्यादा है। भला क्यों न हो! मोबाइल कैमरों, फोटो एडिटिंग सॉफ्टवेयर, और तस्वीरें दिखाने की जगहों (सोशल नेटवर्क, ब्लॉग, माइक्रोब्लॉग, फोरम वगैरह) ने उन्हें आत्मप्रदर्शन के अवसर मुहैया करवाए हैं। यह दरअसल अपने आप से प्यार करने वाली पीढ़ी है। दुनिया के दूसरी सबसे ज्यादा आबादी और दूसरी सबसे तेज आर्थिक वृद्धि वाले देश के नागरिक होने के नाते वे अपने आप को ‘दिखाना’ चाहते हैं। वे भारत को बदल रहे हैं। वे दुनिया को बदल रहे हैं। हमें उन्हें समझना ही होगा। उनके साथ रहना सीखना ही होगा। कवर फैक्टशहरी युवा नए-नए गैजेट से खेलता है और मौज-मस्ती में यकीन करता है, लेकिन वह पैसे को लेकर गैरजिम्मेदार नहीं है। उसका रवैया और मानसिकता है ‘आई कैन डू इट’ यानी मैं सब कर सकता हूं। 39 फीसदी युवाओं ने एक सर्वे में कहा कि अपनी समस्याएं वे खुद हल करने की कोशिश करते हैं।क्या सचमुच आज के बच्चे बड़ों और टीचर्स की इज्जत नहीं करते? आदर ज्ञान और बुद्धिमता से अर्जित किया जाता है। आज बच्चों के पास ज्ञान के बेशुमार स्रोत हैं। उनसे ‘इज्जत’ हासिल करने के लिए आपको उन्हें ऐसा ज्ञान देना होगा, जो ‘नेट पर उपलब्ध’ नहीं है।
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