छात्र अपना रास्ता खुद चुनने
समी ेिकानंद ने युा र्ग को राष्ट्र कार्य करने के लिए सदा आह्वान किया। े कहते थे कि यदि किसी देश का भष्यि जानना चाहते हो उस देश के युा के दिल को झांक कर देखो कि उस दिल में क्या चल रहा है। यह बात बिल्कुल ठीक भी है। युा र्ग ही समाज को सही दिशा दे सकता है। शर्ते ये है कि ह किस दिशा में जा रहा है। इसीलिए आज हर राजनीतिक पार्टी से लेकर हर संगठन युाओं को साथ में मिलाने का प्रयास कर रहा है। अन्ना हजारे बुजुर्ग होकर भी बुजुगर्ो को अपने आंदोलन में शामिल होने की बजाय युाओं से ज्यादा अपील करते नजर आए तो बाबा रामदे अब युाओं को योग की आेर आकर्षित करने के लिए प्रयास कर रहे है। भारतीय युा भी अब अपनी शक्ति पहचान चुका है। इसीलिए उभरते भारत से श् िका हर देश डर रहा है। इन युाओं में छात्रों की महत्ता को कम आंकना सही नहीं है। इसलिए युा र्ग को सही मार्गदर्शन देने से पहले छात्र र्ग को सही मार्गदर्शन देने की जरूरत महसूस होती है। कांग्रेसी युराज भी इस छात्र को अपनी आेर लुभाने के लिए कालेज, श्ििद्यालयों की खाक छान रहे है। लेकिन क्या राहुल जो छात्रों को सपने दिखा रहे है ो सही है या इन छात्रों को सपने कुछ और देखने की जरूरत है। देश की आजादी के बाद छात्रों की सपनों पर गर्मा-गरम बहस होनी आश्यक है। आईये इस बहस में हम भी शामिल हो। बहस इसबात की है कि राहुल की राजनीतिक चकाचौंक छात्र के लिए सही है या अखिल भारतीय द्यिार्थी परिषद् की ६३र्ष की साधना से छात्र को सही मार्गदर्शन मिलेगा।
क्या है राहुल गांधी का रास्ता
राहुल गांधी जो कांग्रेसी युराज है। युराज ह सिर्फ कुछ कांग्रेसी भाईयों के है। समस्त कांग्रेस के े अब भी युराज नहीं है। इसीलिए भारत का युराज कहना तो एकदम गलत है। राहुल गांधी ने इस र्ष पूरे देश में कांग्रेस छात्र संगठन एनएसयूआई के संगठनात्मक चुना कराए। इन चुनाों में माध्यम से राहुल ने सिद्व करने की कोशिश की कि एनएसयूआई में लोकतंत्र जिंदा है, बाकि सभी छात्र संगठन सिर्फ कागजी है। इसीतरह कांग्रेस से छात्रों को जोड़ने के लिए राहुल ने यूनिर्सिटियों में गए। जहां राहुल ने छात्रों से भारत की व्यस्था बदलने के लिए छात्रों को राजनीति में आने का न्यौता दिया। कहा कि कांग्रेस इन छात्रों के लिए बेहतर किल्प है। लेकिन प्रश्न ये है कि राहुल जो कह रहे है? क्या े अपने ऊपर इसबात को लागू कर रहे है। राहुल की खूबी ये है कि े सिर्फ गांधी परिार केोरिस है। इससे ज्यादा उनकी कोई पहचान नहीं है। भारत के गौरशाली इतिहास में उनका क्या योगदान है।? हीं, क्या राजनीति में आकर ही देश का भला हो सकता है। राहुल जी, राजनीति भी समाज का एक हिस्सा है। इसके ठीक होने से समाज नहीं बदलेगा। यदि समाज में पर्तिन करना है तो छात्रों को समाज सेा करना का मार्गप्रशस्त करें। ताकि छात्र समाज को अपना मानते हुए इस देश धरा के लिए भगतसिंह, चं्रशेखर आजाद जसा बलिदान करने का साहस जूटा सके। ह राजनीति से प्रेरित छात्र नहीं कर सकता। एक देशभक्त छात्र ही एेसे जौहर कर सकते है। इसीलिए मुझे राहुल का राजनीति सोच में कुछ गड़बड़ लगती है।
क्या है एबीपी की तपस्या, साधना और मार्ग
भारत का गौरशाली इतिहास को यदि हम गहराई से आंकलन करें तो ध्यान में आएगा कि यह इतिहास राजनीतिक लोगों ने नहीं बनाया। बल्कि हजारों लोगों के निसर्थ बलिदान, तपस्या और साधना से बना है। अखिल भारतीय द्यिार्थी परिषद् का ६३साल का गौरशाली अतीत इसी साधना पर टिका हुआ दिखाई देता है। परिषद् का कार्यकर्ता जब भारत माता की जय, दें मातरम् की जयकार करता है तो हजारों दिलों से निकलनेोले भा दिखाई देता है। बंगलादेशी घुसपैठ के खिलाफ जब ४० हजार परिषद् कार्यकर्ता किशनगंज जाकर घुसपैठियों को ललकारता तो एेसा प्रतीत होता है जसे परिषद् रूपी साहसी अभिमन्यु अपनी मातृभूमि के लिए युद्व का एेलान कर रहा हो। ९ जुलाई, १९४९ को कुछ मनीषियों ने जब अंबाला में परिषद् की स्थापना की योजना बनाई थी। तो े कोई साधारण व्यक्तित् नहीं होंगे। जिनकी सोच आज पूरा श् िमान रहा है। इसी सोच, साधना के कारण देश का १७ लाख से ज्यादा कार्यकर्ता एक सूर में भारत माता का गान करता है। ह पार्टी शिेष से उपर उटकर सिर्फ देश के बारे में सोचता है। ह कभी हजारों की संख्या में रक्तदान करता है तो कभी ृक्षारोपण। कभी गुरू-शिष्य की मर्यादा को पुर्नस्थापित करने के लिए चंदन का तिलक और गुरूओं के पैर छुता हुआ दिखाई देता है तो कभी भ्रष्टाचार रूपी दान के खिलाफ निर्णायक संघर्ष के लिए खड़ा होता है। इसीलिए अब देश के छात्र को तय करना होगा कि भारत का यदि पुर्ननिर्माण करना है तो किस रास्ते पर चले। एक रास्ता एक पार्टी और उसकी जयकार पर खत्म होता है। तो दूसरा रास्ता भारत माता की अनन्य भक्ति का रास्ता है। इस भक्ति में संभ है कुछ न मिले लेकिन ेिकानंद के दिल की धड़कन हम जरूर बनेंगे यह शिस जरूर हमें मिलेगा। इसी शिस के साथ भारत भी जीता है। आईये हम भी अपने आपको इसमें उतार दें।
मुकेश शर्मा
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