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कांट्रैक्ट फार्मिंग कानून होता, तो नहीं बंद होता टमाटर पेस्ट प्लांट

किसानों के नाम पर जारी आंदोलन में शामिल तमाम किसान संगठनों और राजनीतिक दलों को एकबार पंजाब के गांव जहूरा की इस कहानी और घटनाक्रम को जरूर पढना और समझना चाहिए। राष्ट्रीय राजमार्ग-44 पर होशियारपुर व जालंधर जिलों की सीमा पर स्थित है गांव जहूरा। वैसे तो यह गांव पंजाब के 13 हजार अन्य गांवों जैसा ही है, पर आज जब पूरे देश में केंद्र सरकार द्वारा बनाए गए कृषि कानूनों पर चर्चा छिड़ी है तो ऐसे में इस गांव का जिक्र अत्यंत जरूरी और सामयिक है। यह देशभर में एकमात्र वह गांव है, जहां पेप्सिको जैसी मल्टीनेशनल कंपनी ने भारत प्रवेश की आज्ञा के बाद टमाटर से पेस्ट बनाने वाला देश का सबसे पहला प्रोसेसिंग प्लांट स्थापित किया था। इस प्लांट के शुरू होने से लेकर अब तक के सफर की कहानी में सिमटा है इन नए कृषि कानूनों की अहमियत और जरूरत का वह सार जिसे आज विपक्षी दलों समेत तमाम किसान संगठन पूरी तरह नजरअंदाज कर विरोध में खड़े हैं। वर्ष 1989 में प्लांट लगते ही यहां के हजारों किसानों ने कंपनी के साथ किए अनुबंध के तहत उसके द्वारा दी गई टमाटर की उन्नत किस्मों के बीजों का प्रयोग किया। बाजार में कीमत कंपनी अनुबंध के तहत तय

जानकारी की कमी, कृषि कानूनों पर आंदोलन

किसानों के हितों में तीन बिल (विधेयक) पारित होने के साथ ही कृषि सुधार की पहल एक राजनीतिक मुद्दा बन गई है। बीते आठ दिन से किसान आंदोलन के नाम पर कुछ राजनीतिक दल और संगठन किसानों को भड़काकर राजनीतिक रोटियां सेंक रहे है। परिणामस्वरूप कई राज्यों में किसान सड़क पर उतर चुके हैं। कृषि सुधार वास्तव में हैं क्या और उनसे नफा है या नुकसान, यह बात पीछे छोड़ हर सियासी दल आगामी विधानसभा चुनावों के लिए इस मुद्दे को अवसर मानते हुए किसानों के आंदोलन की आग में घी डालने पर उतर आया है। नतीजन पंजाब से लेकर महाराष्ट्र तक कई दल इसका विरोध कर रहे हैं। इन विधेयकों के विरोध में शिरोमणि अकाली दल की हरसिमरत कौर बादल ने केंद्रीय मंत्री पद से इस्तीफा तक दे दिया है। निहित स्वार्थ-प्रेरित आढ़तिया लॉबी द्वारा भड़काए गए किसानों के सड़क पर उतर आने के बाद अब कुछ राजनीतिक दलों में इन विधेयकों का विरोध करते हुए किसान हितैषी दिखने की होड़ मच गई है। दरअसल यह आढ़तिया लॉबी द्वारा प्रायोजित और वोट बैंक की राजनीति से प्रेरित विरोध है। ऐसे में यह जानना बेहद जरुरी है कि इन विधेयकों में क्या खास है और क्यों इनका विरोध हो रहा है। क्

लोकसभा चुनाव 2019: इन 10 वजहों से हरियाणा की सभी सीटों पर जीतेगी BJP

चुनाव आयोग ने लोकसभा चुनाव 2019 की तारीखों का ऐलान कर चुका है। ऐसे में सभी पार्टियों ने चुनाव प्रचार में अपनी पूरी ताकत झोंकने की तैयारी शुरू कर दी है। पिछले लोकसभा चुनाव—2014 में हरियाणा की 10 लोकसभा सीट में से 7 सीटें बीजेपी, दो इनेलो और एक सीट पर कांग्रेस पार्टी की झोली में गई। विधानसभा चुनाव में प्रदेश में पहली बार भारतीय जनता पार्टी को स्पष्ट बहुमत मिला और भाजपा पार्टी की सरकार बनी। इसलिए तय है कि लोकसभा चुनाव 2019 पर प्रदेश सरकार के कार्यों का असर भी पडेगा। पांच नगर निगम और जींद उपचुनाव जीतकर पार्टी उत्साहित है। मोदी व मनोहर सरकार के विकास कार्यों के बल पर पार्टी सभी 10 सीटों पर जीत का दावा कर रही है। आईये, इन वजहों को जानते है:— 1. ईमानदार मुख्यमंत्री ने किया कायल लोकसभा चुनाव 2019 में इसबार मोदी—मनोहर की जोडी लोगों को खूब भा रही है। प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के साथ लोग मुख्यमंत्री मनोहरलाल की ईमानदारी कार्यशैली से खासे प्रभावित है।  क्योंकि प्रदेश के पूर्व मुख्यमंत्रियों पर लगातार भ्रष्टाचार के आरोप लगते रहे। जेबीटी टीचर घोटाले में जहां पूर्व मुख्यमंत्री ओमप

एबीवीपी: व्यक्ति निर्माण से राष्ट्र निर्माण

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राष्ट्रभक्ति ले हृदय में, हो खडा यदि देश सारा। संकटों पर मात कर यह राष्ट्र विजयी हो हमारा।। ये पंक्तियां   'अखिल भारतीय  विद्यार्थी  परिषद्'   ( ABVP) जैसे दूरदर्शी, समदर्शी, सर्वसमावेशी संगठन का ध्येय मंत्र है। तभी तो ऐसे गीतों को गाकर परिषद् के कार्यकर्ताओं का सीना चौड़ा, भुजाएं फौलादी और आत्मविश्वास दुगुना हो जाता है। तब एक सामान्य सा छात्र एक ऐसा व्यक्ति बन जाता है, जो कुछ भी कर गुजरने की इच्छा रखता है। उसमें इतना जोश रहता है कि वह किसी भी चुनौती को स्वीकारने के लिए  तैयार रहता है। व्यक्ति निर्माण से राष्ट्रनिर्माण के इस मन्त्र ने हजारों छात्र-युवाओं को दिशा दी है। इसलिए आज समाज ने स्वीकार किया है कि छात्र शक्ति ही राष्ट्रशक्ति है।   स्वतंत्रता आन्दोलन में छात्रों की प्रमुख भूमिका रही है, इस बात से कोई इंकार नहीं कर सकता। महात्मा गांधी के आह्वान पर लाखों छात्र अंग्रेजी सरकार द्वारा स्थापित स्कूलों, कॉलेजों और विश्वविद्यालयों को छोडकर आजादी के आंदोलन में कूद पडें थे। उस समय अंग्रेजी सरकार ने छात्रों को उनके कैरियर की दुहाई दी। लेकिन, छात्र समुदाय ने कैरियर क

युगदृष्टा स्वामी विवेकानंद की पथगामी मनोहर सरकार

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''आज   अपने देश को आवश्यकता है ,  लोहे के समान मांसपेशियों और वज्र के समान   स्नायुओं की। हम बहुत दिनों तक रो चुके ,  अब रोने की आवश्यकता नहीं। अब   अपने पैरों पर खड़े हो जाओ और मनुष्य बनो''।   आज से ठीक  121  वर्ष   पूर्व मद्रास के युवाओं के सम्मुख दिए व्याख्यान में स्वामी विवेकानंद ने   यह विश्वास व्यक्त किया था। स्वामी जी ने अपने जीवन ,  प्रेरणा ,  विचार ,  साहित्य तथा कर्तव्य से तरुणाई को परिभाषित व प्रेरित किया। उन्होंने  39  वर्ष  5  माह व  22  दिन की अल्पायु में ऐसा पराक्रम किया कि सारा विश्व   स्तब्ध  रह गया। यह स्वामी विवेकानन्द के सजीव संदेश का ही प्रभाव है जिसके   कारण उनके प्रत्यक्ष या परोक्ष सम्पर्क में आए लोगों का जीवन बदल गया।   हरियाणा के मुख्यमंत्री मनोहर लाल की कार्यशैली से यह अंदाजा लगाया जा सकता   है कि वे भी स्वामी विवेकानंद के पथगामी है। जो प्रदेश की दुर्दशा पर रोने-पीटने और दूसरे पर दोष देने की बजाय खुद प्रदेश को स्वाबलंबी बना   रहे हैं। वे उसूलों के पक्के ,  निष्ठावान ,  युवाओं के प्रेरणास्रोत और एक   आदर्श व्यक्तित्व के रूप में उभरे हैं।

आखिर कब मिलेगी ''केरल'' को आजादी

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शनिवार रात एकबार फिर केरल की घरती लहुलुहान हुई। केरल के कोयिलांदी जिले के किझैयूर गांव में राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ (आरएसएस) के कार्यकर्ताओं को माक्र्सवादी कम्युनिष्ट पार्टी (सीपीएम) कार्यकर्ताओ ने निशाना बनाया। उन पर बम फेंक कर जान से मारने की कोशिश हुई। इस हमले में संघ के तीन कार्यकर्ता घायल हुए हैं। तीन दिन पहले (5 मार्च) भी संघ के कार्यालय पर देसी बम से हमला किया गया था। इसमें चार कार्यकर्ता घायल हुए थे। लेकिन, केरल की वामपंथी सरकार इन घटनाओं पर चुप्पी साधे हुए है। जबकि इसी विचारधारा से प्रेरित छात्र कभी कश्मीर, कभी बस्तर, कभी जेएनयू तो कभी डीयू में आजादी की मांग करते है। मुझे समझ में नहीं आ रहा है कि वामपंथी छात्र व उनके आका किस आजादी की बात कर रहे है। ये आजादी ही तो है कि वे भारत माता तेरे टुकड़े होंगे जैसे देशद्रोही नारे लगा लेते है। ऐसा कृत्य किसी दूसरे देश में करते तो क्या हालत होता, ये वे जानते है।  और यदि वामपंथियों को आजादी के सही अर्थ पता है तो क्या वे बता सकते है कि केरल को आजादी कब मिलेगी? क्या केरल में भारत माता की जय, वंदे मातरम् के नारे लगाना अपराध है? यदि नहीं तो

नया नहीं है राष्ट्रद्रोह का यह खेल

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मुकेश शर्मा, दिल्ली विश्वविद्यालय में जारी राष्ट्रवाद बनाम राष्ट्रद्रोह में अखिल भारतीय विद्यार्थी परिषद्(एबीवीपी) ने सिद्ध कर दिया कि वह कैंपस में देशद्रोही नारों को बर्दाश्त नहीं करेगी। यह सही भी है। क्योंकि अभिव्यक्ति के नाम पर देश के खिलाफ कुछ भी कहने की इजाजत नहीं होनी चाहिए।  मेरा मानना है कि अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता एक स्वस्थ लोकतंत्र के लिए जरूरी भी है। लेकिन संसद पर हुए आतंकी हमले के दोषी अफजल गुरु की बरसी मनाकर उसे शहीद बताना और भारत विरोधी नारे लगे जैसी हरकतों को देश हित में नहीं कहा जा सकता है। 2014 में आई राष्ट्रवादी भाजपा सरकार के बाद इन सपोलों का दम घुटने लगा है। इसलिए छटपटाते हुए ये इधर-उधर हाथ-पैर मारकर अपने अस्तित्व की लड़ाई लड़ रहे है। इससे पहले भी ये पथभ्रष्ट छात्र कई बार देश विरोधी गतिविरोधी गतिविधियों में पैरवी करते नजर आए।  चाहे फिदायीन इशरत जहां का मामला हो या संसद हमले के जिम्मेदार अफजल गुरू का मामला हो या मुंबई हमलों के लिए जिम्मेदार याकूब मेमन की फांसी का सवाल हो। मुझे समझ नहीं आता कि जब कभी चीन की फौज विवादित क्षेत्र से भारत में घुस आती है या